मन मर्ज़िया तेरी यहाँ न चलेगी
तक़दीर का तराशा हुआ रास्ता तुझे भटकने ना देगी
कितनी भी खेल ले तू आँख मेंचोली मुक़द्दर से
मान के चल यही है उसकी रचना तेरे लिए
समर्पण का भाव रख उस धरती की तरह
जिसने अपना अस्तित्व को त्याग दिया
गंगा का रास्ता बनके सागर से संगम करवाया
ज़रिया बनके अमर हुआ , अपना किरदार भरपूर निभाया
कर ले आईने से दो सच्ची बाते हर दिन
निर्णायक बनके अपने फैसले खुद सुनाले
साहस और धैर्य का परिचय
खुद आप से हर दिन तू पाले
"मै" , जब तक सर चडके न बोले
रोक न सकेगी दुनिया तुझको
ऊपर नीचे , नीचे ऊपर होगा सफर ज़रूर
इसी पथ पे गिरते चढ़ते
बटोरना है तुम्हे ज़िन्दगी के सीख सारे