पिछले कुछ दिनों से अजीब सा चल रहा है
दिन भर की मेहनत के बाद
जब थाली सजाके टीवी चलाके खाने बैठते है
बस ब्रेकिंग न्यूज़ की भौचार होती है
मौत की खबरें और लाशों के ढेर दिखाते है!
पेट में भूक होती है पर
निवाला गले से नहीं उतरता
थाली को सामने से हटाना
बहुत अजीब और नाटकीय लगता है!
न जाने कब ख़त्म होगा ये सिलसिला
पिचले कुछ दिनों से अजीब सा ही चल रहा है
दिल बहलाने के लिए
कभी बागीचे में जंगल साफ़ कर लेती हूँ
थो कभीकुत्ते बिल्लियों को नेहला देती हूँ
फिर कहीं न कहीं से एक सखी का phone आजाता है
जिसमे सिर्फ मौत की ही बाते होती है.
उत्साह भरे लहज़े में लाशों ही गिनती
और मृतकों की तफ्सील की जाती है
तबाही की ख़बरों में इतना जाइका ढून्ढलेती है
की विस्तार से लुफ्त उठाके विवरण देने लगती है
मैं बस कोई बहाना करके
फ़ोन काट के म्यूट पे दाल देती हूँ.
उत्साह भरे लहज़े में लाशों ही गिनती
और मृतकों की तफ्सील की जाती है
तबाही की ख़बरों में इतना जाइका ढून्ढलेती है
की विस्तार से लुफ्त उठाके विवरण देने लगती है
मैं बस कोई बहाना करके
फ़ोन काट के म्यूट पे दाल देती हूँ.
न जाने कब ख़त्म होगा ये सिलसिला
पिछले कुछ दिनों से अजीब सा ही चल रहा है
देर रात तक जागने के बाद
देर रात तक जागने के बाद
मुश्किल से आँख लगती है
ठीक उस पल में
भूके भेड़ियों की तरह आक्र्रमण
करने लगते है बुरे सपने!
मानो ऐसे जैसे एक आरसे से
इस मौके का इंतज़ार कर रहे हो
(AC) की ठंढ में पसीने से तरबतर होके कांपते हुए उठ जाती हूँ
आँख खोलके अपनों को बिस्तर पे करवट लेते हुए देख
ये तस्सल्ली हो जाती है की अब तक मेरी दुनिया मेह्फूस है
पर जिस रफ़्तार से यम धूत धरती का भ्रमण कर रहे है
लगता है मौत हम सब से बस दो गज़ की दूरी पे है
न जाने कब ख़त्म होगा ये सिलसिला
पिछले कुछ दिनों से अजीब सा ही चल रहा है
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