Monday, July 29, 2019

घना अँधेरा हैं

घना अँधेरा हैं
सुनसान  काली रात है
चारो और सन्नाटा है
 दूर दूर तक कोई आवाज़ नहीं
 सिर्फ मेरे   साँसों की आहट है
 मैं अकेला था घर पे
खौफ  सा लगने लगा
 लग रहा था कोई है
छुपा हुआ है कहिं
पर हकीकत में कोई नहीं है
ये  राज़  मुझे पता था।

तो  किससे  डर  रहा था ?
आखिर  किससे वहशत  हो रहा था
डर का तस्सवुर ऎसे  हो गया 
की सन्नाटा भी शोर मचा  रहा था
कुछ पल  मैंने गौर करना बंद किया
खामोश बैठ गया
खौफ  को समझने   लगा
 सन्नाटे से दोस्ती होगया 
अपने  करीब होने लगा
बेवजह  ही डरा जा रहा था 
 इल्म की रौशनी ने
बहार के अँधेरे को दूर किया 
बैठे बैठे मैंने खुद से
ढेर सारी  बातें की
अँधेरा आइना बनके
मुझे अपने आप से मिलाया
मैंने रात बितादी शब  के साथ
मोहब्बत सा होगया था अँधेरे  से
शब डूब  गया , पर  मैं  जाग गया

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