Monday, September 28, 2015

अपनी आत्मा को दबाके

अपनी आत्मा को दबाके
हार जीत के इस खेल में
किस क़ीमत पे 
ये जीत हासिल किए हो
क्या पाए और क्या खोए हो
अंदर की रौशनी को बुजाके
अपने आप से मुँह छुपाके
क्या खोएे और क्या पाए हो
दुनियादारी की आड़ में
आँसुओं को हँसी से
गुस्से को उमंग से दबाके
बखूबी खेले झूठे किरदार तुमने
आओ सामना करो एक बार अपना
मिटादो लोभ लालच और घमंड को
हर कर्म पलट के वार करेगा
दुगनी कीमत ऐट लेगा
हिसाब अपना अपना सबको चुकाना है
आज मज़ा तो कल सजा भी भुगतना है
हार जीत के दौड़ मे इमान को दाऊ पे लगाके
अस्तित्व को मिटाके कौन सी दौलत कमाओगे
अपने खुदा के घर में उनसे रु बा रु कैसे करोगे
जब मौत खड़ी होगी तुम्हारी देहलीज़े पे
फक्र होना होगा तुम्हे अपनी ज़िन्दगी पे
आत्मा से अलग होते हुए
पछतावा न हो तुम्हे अपने कर्मों पे
ऐसी ज़िन्दगी थू जिले आज से
भूल जा बाते सारी पुरानी
ऐसी ज़िंदगी थु जी ले आज से

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