मरके भी रूह हैरान है
मेरे ही प्यार ने मुझे वीरान किया
मंज़िल न सही किनारा भी ना बन सका
कभी तक़दीर को दोष दिए
कभी मुक़दर को कोस दिए
मरके भी रूह हैरान है
मेरे ही प्यार ने मुझे वीरान किया
सबसे करीब होके बी अंजाना ही रहगया
साथ चलते चलते बरबादी का सबब बना नया
कम्बख्त इस कदर गुमराह किया
लौटने की उम्मीद भी मिटा दिया
साथ चलते चलते बरबादी का सबब बना नया
कम्बख्त इस कदर गुमराह किया
लौटने की उम्मीद भी मिटा दिया
ठोकर भी लगी थो उस पत्थर से
जिसे हम अपना समज बैठे
जिसे हम अपना समज बैठे
कभी तक़दीर को दोष दिए
कभी मुक़दर को कोस दिए
तेरी बेवफाई के इलज़ाम सब पे थोप दिए
मेरे ही प्यार ने मुझे वीरान किया
its nice...
ReplyDelete:D
GUD CONNECTED sumthng in my word a ZiG zAg...poem wid touchy emo. Pyar
like it ..