Monday, October 17, 2011

मरके भी रूह हैरान है

मरके भी रूह हैरान है
मेरे ही प्यार ने मुझे वीरान किया


मंज़िल न सही किनारा  भी ना बन सका
सबसे करीब होके बी  अंजाना ही रहगया
साथ चलते चलते  बरबादी का सबब बना नया
कम्बख्त इस कदर गुमराह   किया
 लौटने की  उम्मीद   भी मिटा दिया 
ठोकर भी लगी थो उस पत्थर से
 जिसे हम अपना समज बैठे 

कभी तक़दीर को दोष दिए
 कभी मुक़दर को कोस दिए  
तेरी  बेवफाई के इलज़ाम सब  पे थोप दिए  

मरके भी रूह हैरान है


मेरे ही प्यार ने मुझे वीरान किया

1 comment:

  1. its nice...
    :D
    GUD CONNECTED sumthng in my word a ZiG zAg...poem wid touchy emo. Pyar
    like it ..

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